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जानिए, संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा और पूजन विधि

जानिए, संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा और पूजन विधि
संकष्टी चतुर्थी हर महीने दो बार चतुर्थी होती है अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा और पूजन विधि


संकष्टी चतुर्थी हर महीने दो बार चतुर्थी होती है अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस महीने संकष्टी चतुर्थी 22 मई 2019 को आने वाली है। इन दिन भगवान श्री गणेश जी की विधि-विधान पुर्वक पूजन करने पर सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

संकष्टी चौथ व्रत कथा
हमारे ईष्ठ बुजर्गों बताते हैं कि सतयुग में राजा हरिचन्द्र के राज्य में एक कुम्हार था। जो बहुत कोशिशों के बाद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उस कुम्हार ने एक पुजारी को यह बात बताई। उस पर पुजारी ने कहा कि किसी भी छोटे बच्चे की बलि से तुम्हारी यह समस्या दूर हो सकेगी। इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर आंवा में बलि दे डाली । वह संकष्टी चौथ का दिन था। बाद में उसकी मां ने अपने बेटे को काफी खोजने के बाद भी जब नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की। उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए और बच्चे को भी जीवित देखा ।
इससे कुम्हार डर गया और राजा हरिचन्द्र के सामने पहुंच पूरी कहानी बताई। इसके बाद राजा हरिचन्द्र ने छोटे बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने बताया कि संकटों को दूर करने के लिए संकष्टी चौथ की महिमा का वर्णन किया। तभी उसी समय से महिलाएं अपनी संतान और परिवार  सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं।



संकष्टी चौथ पूजन व्रत विधि
संकष्टी चौथ व्रत के दिन महिलाएं सुबह स्नान के बाद भगवान श्री गणेश जी की पूजा करती हैं औैर पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं।  शाम को श्री गणेश जी विधि-विधान से पूजन एवं तिल, गुड़, फल-फूल आदि अर्पित किया जाता है। पूजा में दूब चढ़ाना बहुत जरूरी है। श्री गणेश जी के सामने दीप जलाकर मंत्र का जाप करें। चंद्रमा के उदय के बाद नीचे की ओर देखते अर्घ्य देने के बाद ही पूरा होता है, इसलिए 22 मई 2019 को रात 08:23 पर चंद्रमा उदय के बाद चंद्र को अर्घ्य और गणेश जी का विधि-विधान से पूजन करें।
नोटः- संकष्टी चौथ के व्रत में मूली का सेवन नहीं किया जाता है।


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